Ayushya Yoga

ज्योतिष में आयुष्य विचार

विषय प्रवेश

संसार का प्रत्येक मनुष्य चाहे वह किसी भी जाति धर्म सम[रदाय व मान्यताओं को मानने वाला क्यों न हो,उसके ह्रदय में प्रतिपल यह जानने की प्रबल इच्छा बनी रहती है कि उसकी आयु कितनी है ? उसका जीवन कब तक चलेगा ? संसार के किसी भी विज्ञान , किसी भी डाक्तर दार्शनिक व चिंतक के पास इस समस्या का समाधान नही है कि अभी जो बालक पैदा हुआ है वह कब तक जियेगा ? इसकी मृत्यु कब व किन परिस्थितियों में होगी ? इसकी आयु कितनी है ? इसकी Span Life कितनी है ? वास्तव में सांसारिक प्राणी को समझ में न आने वाली सबसे विकट व कठिन समस्या है,उसके मृत्यु का समय निश्चित करना।
यह बडे गौरव व आत्म-संतुष्टि का विषय है कि ज्योतिष शास्त्र में इस विषय पर व्यापक चिंतन किया गया है फ़िर भी जीवन भर अनेक ज्योतिष ग्रंथो को पढकर उनका अध्ययन करके भी आहुष्य का निश्चित निदान कह पाना अत्यंत कठिन है। गणित द्वारा आयुर्दाय निकालकर जन्म पत्रिकाओं में लिखना सामान्य ज्योतिष प्रंपरा है परंतु इसमें भी कुछ भी तथ्य नहीं। पूर्वाचार्यों ने आहुष्य निर्णय पर बहुत जोर दिया है,उन्होने कहा है :-

परम आयुप्रीक्षेत पश्चात्लक्षण समाचरेत।
आयुर्हीन: नरोयस्य,लक्षणै: किं प्रयोजनम॥

अर्थात विद्वान ज्योतिषी को चाहिये कि सबसे पहले सद्यजात जातक के आयु की परीक्षा करे उसके पश्चात ही किसी अन्य योग चरित्र व लक्षण पर विचार करे,क्योंकि आयु की लम्बाई जब आयु ही नही होगी तो अन्य लक्षणों का क्या प्रयोजन ।
संसार में गुणीजनों ने सात प्रकार के सुखों की चर्चा की है,उसमे सबसे पहला सुख स्वस्थ जीवन और दूसरा सुख धन को माना है।
पहला सुख निरोगी काया,दूजा सुख हो घर में माया

ऐसा लगता है है कि ज्योतिष शास्त्र ने भी इस सर्वमान्य लोकोक्ति को महत्व दिया है और जन्म कुंडली के पहले भाव से देह तथा दूसरे भाव से द्रव्य धन का चिंतन किया है,जन्म पत्रिका बनवाने आने वाले व्यक्ति को इस वर्ष में क्या घटना होने वाली है यह समझने और जानने की उत्कंठा बनी रहती है,जब आयुर्योग निश्चित करना आद्य कृत्य है तो गुणज्ञ ज्योतिषी को सबसे पहले उसी पर विचार करना चाहिये।

सद्य: जात बालक की मृत्यु और पैदा होते ही मृत्यु पर विचार करना एक विचित्र समस्या है। बालक की दशा महादशा अंतरदशाओं एवं मात्र आयुर्दाय से गणित करके इतना सब कुछ निकालपाना संभव नही है। यह काम अति परिश्रमजन्य व अनुभवगम्य है। काल गणना की इसी समस्या के समाधान जेतु अनेक दशा प्रकरणों की निष्पत्ति हुयी। विंशोत्तरी दशा अष्टोतरी दशा योगिनी दशा काल दशा मुद्दा दशा ह्रद्दा दशा पात्यंश दशा गोचर दशा और अनेक प्रकर की दशाओं पर निंतन मनन किया गया पर इनमें भी किसी भी एक वाक्यता नही है।
ज्योतिष शास्त्र की असली गंभीर समस्या यहीं से शुरु होती है।
तर्को प्रतिष्टित श्रुतयो विभिन्ना:
नेको ऋषि: यस्य मत: प्रमाणम,
अनेक महान ऋषि और दैवज्ञ महापुरुष उये जिन्होने बुद्धि ज्ञान तर्क के अनुपात से भिन्न भिन्न सिद्धांतो की संरचना की परंतु यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि किसी भी एक दैवज्ञ महा्पुरुष के मत को अंतिम रूप से अनुसंधानित करके सार्वकालिक सत्य की कसौटी पर कसकर हमने निष्कर्ष नहीं निकाला।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऋषियों द्वारा प्रणीति विव्य ज्ञान को ग्रहण करने की योग्यता पात्रता हममें नही है तो ऋषि बेचारे क्या करें।
श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य अलौकिक स्वरूप को प्रकट किया परंतु केवल दो तीन पुरुष ही उस दिव्य शक्ति अलौकिक शक्ति का दर्शन कर पाये। भौतिक नेत्र तो सभी के पास थे पर दिव्य दर्शन को देखने समझने की अंतर्ज्योति किसी के पास नही थी। बिल्कुल यही हाल ज्योतिष शास्त्र का है। भारतीय महाऋषियों ने घोर तपस्या के माध्यम से अपने आपको तिल तिल जलाकर ज्योतिष के इस दिव्य ज्ञान को जीवित रखा। आज ज्ञान विज्ञान का यह दुर्लभ खजाना सभी के लिये खुला है। अब ज्योतिष विद्या केवल ब्राह्मणों की विरासत नही रही। आज विश्व के हर देश हर जाति ह र्संप्रदाय व हर धर्म में आपको ज्योतिष का विषय चर्चा मे मिल जायेगा। अकेले भारतवर्ष में आपको हजारों लाखों की संख्या में ज्योतिषी मिल जायेंगे। पर कितने लोग है जो समर्पित भाव से ज्योतिष शास्त्र के अविरल शोध अध्ययन व अनुसंशान कार्य में जी जान से जुडे है,और इस दिव्य विज्ञान के आलोक से जगत को आलोकित कर पाये।
इन दिनो ज्योतिष में जजारों पुस्तकें छप रही है सकडों लेखक भविष्यवक्ता पैदा हो गये है,एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दसक से विश्व में लाखों करोडों की संख्या में ज्योतिष से संबन्धित सामग्री छपी है,जो कि अन्य किसी साहित सामग्री की तुलना में चार गुना अधिक है। आज किसी भी भाषा में प्रकाशित समाचार पत्र ज्योतिष फ़ल बिना अपूर्ण व अधूरा माना जाता है। निश्चय ही ज्योतिष प्रेमियों की संख्या करोंडों में बढी है। ऐसे में ज्योतिष के प्रति जागरूक अभ्येताओं व ज्योतिष संस्थाओं की जिम्मेदारी और अधिक बढ जाती है। यदि इन हजारों लाखों करोडों की ज्योतिष सामग्री के बीच हम केवल एक बात एक तथ्य एवं सूत्र की सच्चाई का पता लगाने में सफ़ल हो जायें तो आज ज्योतिष के दिव्य ज्ञान क अझंडा पुन: पूरे विश्व में फ़हर जाये। हम हमारी सारी ज्ञान सामग्री अंतर्चेतना के माध्यम से यदि यह पता लगाने में सफ़ल हो जाये कि अमुक व्यक्ति कितना और कब तक जियेगा,तो समस्त संसार की मानव जाति इस समस्या के निराकरण हेतु हमारी कृतज्ञ हो जायेगी,ऋणी हो जायेगी।

ज्योतिष शास्त्र में आयु के विभिन्न मानदंड

आयुष्य निर्णय पर ज्योतिष शास्त्र के सर्वमान्य सूत्रों के संकलन उदाहरण जैमिनी सूत्र की तत्वादर्शन नामक टीका में मिलता है। महर्षि मैत्रेय ने ऋषि पाराशर से जिज्ञासा वश प्रश्न किया कि हे मुन्हे आयुर्दाय के बहुत भेद शास्त्र में बतलाये गये है कृपाकर यह बतलायें कि आयु कितने प्रकार की होती है और उसे कैसे जाना जाता है,इस ज्योतिष के मूर्तिमंत स्वरूप ऋषि पराशन बोले -

बालारिष्ट योगारिष्ट्मल्पमध्यंच दीर्घकम।
दिव्यं चैवामितं चैवं सत्पाधायु: प्रकीर्तितम॥

हे विप्र आयुर्दाय का वस्तुत: ज्ञान होना तो देवों के लिये भी दुर्लभ है फ़िर भी बालारिष्ट योगारिष्ट अल्प मध्य दीर्घ दिव्य और अस्मित ये सात प्रकार की आयु संसार में प्रसिद्ध है।

बालारिष्ट

ज्योतिष शास्त्र में जन्म से आठ वर्ष की आयुपर्यंत होने वाली मृत्यु को बालारिष्ट कहा गया है। यथा लग्न से ६ ८ १२ में स्थान में चन्द्रमा यदि पाप ग्रहों से द्र्ष्ट हो तो जातक का शीघ्र मरण होता है। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण का समय हो सूर्य चन्द्रमा राहु एक ही राशि में हों तथा लग्न पर शनि मंगल की द्रिष्टि हो तो जातक पन्द्रह दिन से अधिक जीवित नही रहता है,यदि दसवें स्थान में शनि चन्द्रमा छठे एवं सातवें स्थान में मंगल हो तो जातक माता सहित मर जाता है। उच्च का का या नीच का सूर्य सातवें स्थान में हो चन्द्रमा पापपीडित हो तो उस जातक को माता का दूध नही मिलता है वह बकरी के दूध से जीता है या कृत्रिम दूध पर ही जिन्दा रहत है। इसी प्रकार लग्न से छठे भाव में चन्द्रमा लग्न में शनि और सप्तम में मंगल हो तो सद्य जात बालक के पिता की मृत्यु हो जाती है।
इस प्रकार अनेक बालारिष्ट योगिं का वर्णन शास्त्र में मिलता है। गुणीजन बालारिष्ट से बचने का उपाय चांदी का चन्द्रमा मोती डालकर प्राण प्रतिष्ठा करके बालक के गले में पहनाते है क्योंकि चन्द्रमा सभी चराचर जीव की माता माना गया है। जिस प्रकार मां सभी अरिष्टों से अपनी संतान की रक्षा करती है उसी प्रकार से चन्द्रमा बालारिष्ट के कुयोगों से जातक की रक्षा करता है।

पित्रोर्दोषैर्मृता: केचित्केचिद बालग्रहैरपि।
अपरे रिष्ट योगाच्च त्रिविधा बालमृत्यव:॥

शास्त्रकारों ने यह स्पष्ट घोषणा की है कि जन्म से चार वर्षों के भीतर जो बालक मरता है उसकी मृत्यु माता के कुकर्मों व पापों के कारण होती है। चार से आठ वर्ष के भीतर की मौत पिता के कुकर्मों व पाप के कारण होती है,नौ से बारह वर्ष के भीतर की मृत्यु जातक के स्वंय के पूर्वजन्म कृत पाप के कारण होती है,और आठ वर्ष बाद जातक का स्वतंत्र भाग्योदय माना जाता है। इसलिये कई सज्जन बालक की सांगोपांग जन्म पत्रिका आठ वर्ष बाद ही बनाते है।

योगारिष्ट

आठ के बाद बीस वर्ष के पहले की मृत्यु को योगारिष्ट कहा जाता है चूंकि विशेष योग के कारण अरिष्ट होती है अत: इसे योगारिष्ट कहा जाता है।

अल्पायु योग

बीस से बत्तिस साल की आयु को अल्पायु कहा है। मोटे तौर पर वृष तुला मकर व कुंभ लगन वाले जातक यदि अन्य शुभ योग न हो तो अल्पायु होते है। यदि लग्नेश चर मेष कर्क तुला मकर राशि में हो तो अष्टमेश द्विस्वभाव मिथुन कन्या धनु मीन राशि में हो तो अल्पायु समझना चाहिये। लगनेश पापग्रह के साथ यदि ६ ८ १२ भाव में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो नीच राशिगत अस्त निर्बल यो तो अल्पायु योग होता है। दूसरे और बारहवे भाव में पापग्रह हो केन्द्र में पापग्रह हो लगनेश निर्बल हो उन पर शुभ ग्रहों की द्रिष्टि नही हो तो जातक को अल्पायु समझना चाहिये। इसी प्रकार यदि जन्म लगनेश सूर्य का शत्रु हो जातक अल्पायु माना जाता है।

यदि लग्नेश तथा अष्टमेश दोनो ही स्थिर राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। इसी प्रकार शनि और चन्द्रमा दोनो स्थिर राशि में हो अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लगन दोनो ही स्थिर राशि की हों अथवा एक चर व दूसरे द्विस्वभाव राशि की हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लग्न द्रिष्काण दोनो ही स्थिर राशि हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लगन द्रिषकाण में एक की चर और दूसरे की द्विस्वभाव राशि तो भी जातक अल्पायु होता है। शुभ ग्रह तथा लग्नेश यदि आपोक्लिम ३ ६ ८ १२ में हो तो जातक अल्पायु होता है। जिस जातक की अल्पायु हो वह विपत तारा में मृत्यु को पाता है।

मध्यायु योग

बत्तिस वर्ष के बाद एवं ६४ वर्ष की आयु सीमा को मध्यायु के भीतर लिया गया है। यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्राय: मध्यम आयु होती है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर मेष कर्क तुला मकर तथा दोसोअरा स्थिर यानी वृष सिंह वृश्चिक कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो ही द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक की मध्यम आयु होती है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण में एक की चर राशि तथा दूसरे की स्थिर राशि हो तो जातक मध्यामायु होता है। यदि शुभ ग्रह पणफ़र यानी २ ५ ८ ११ में हो तो जातक की मध्यमायु होती है। मध्यायु प्रमाण वाले जातक की मृत्यु प्रत्यरि तारा में होती है।

दीर्घायु योग

६४ से १२० साल के मध्य को दीर्घायु कहा जाता है। यदि जन्म लगनेश सूर्य का मित्र होता है तो जातक की दीर्घायु मानी जाती है। लगनेश और अष्टमेश दोनो ही चर राशि में हो तो दीर्घायु योग माआ जाता है।यदि लगनेश और अष्टमेश दोनो में एक स्थिर और एक द्विस्वभाव राशि में हो तो भी दीर्घायु योग का होना माना जाता है। यदि शनि और चन्द्रमा दोनो ही चर राशि में हो अथवा एक चर राशि में और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो दीर्घायु होग होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लग्न दोनो ही चर राशि की हो अथवा एक स्थिर व दूसरी द्वस्वभाव राशि की हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण दोनो की चर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है यदि शुभ ग्रह तथा लगनेश केंद्र में हो तो जातक दीर्घायु होता है। लगनेश केन्द्र में गुरु शुक्र से युत या द्र्ष्ट हो तो भी पूर्णायु कारक योग होता है,लगनेश अष्टमेश सहित तीन ग्रह उच्च स्थान में हो तथा आठवां भाव पापग्रह रहित हो तो जातक का पूर्णायु का योग होता है। लगनेश पूर्ण बली हो तथा कोई भी तीन ग्रह उच्च स्वग्रही तथा मित्र राशिस्थ होकर आठवें में हो तो जातक की पूर्णायु होती है।

दिव्यायु

सब शुभ ग्रह केन्द्र और त्रिकोण में हो और पाप ग्रह ३ ६ ११ में हो तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो दिव्य आयु का योग होता है। ऐसा जातक यज्ञ अनुष्ठान योग और कायाकल्प क्रिया से हजार वर्ष तक जी सकता है।

अमित आयु योग

यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केन्द्र में हो शुक्र पारावतांश यानी अपने षडवर्ग में एवं कर्क लगन हो तो ऐसा जातक मानव नही होकर देवता होता है,उसकी आयु की कोई सीमा नही होती है वह इच्छा मृत्यु का कवच पहिने होता है।

वार से आयु की गणना करना

मानसागरी व अन्य प्राचीन जातक ग्रंथो मे वारायु की गणना दी गयी है। उनके अनुसार रविवार का जन्म हो तो जातक ६० साल जियेगा परन्तु जन्म से पहला छठा और बाइसवां महिने में घात होगा,सोमवार का जन्म हो तो जातक ८४ साल जिन्दा रहेगा लेकिन ग्यारहवे सोलहवे और सत्ताइसवे साल में पीडा होगी मंगलवार को जन्म लेने वाला जातक चौहत्तर साल जियेगा,लेकिन जन्म से दूसरे व बाइसवें वर्ष में पीडा होगी,बुधवार को जन्म लेने वाला जातक चौसठ साल जियेगा,लेकिन आठवें महिने और साल में घात होगी,गुरुवार को जन्म लेने वाले जातक की उम्र चौरासी साल होती है लेकिन सात तेरह और सोलह साल में कष्ट होता है,शुक्रवार को जन्म लेकर जातक ६० साल जिन्दा रहता है,शनिवार का जन्म हो तो तेरहवे साल में कष्ट पाकर सौ साल के लिये उसकी उम्र मानी जाती है।

आयु निर्णय का एक महत्वपूर्ण सूत्र

महर्षि पाराशन ने प्रत्येक ग्रह को निश्चित आयु पिंड दिये है,सूर्य को १८ चन्द्रमा को २५ मंगल को १५ बुध को १२ गुरु को १५ शुक्र को २१ शनि को २० पिंड दिये गये है उन्होने राहु केतु को स्थान नही दिया है। जन्म कुंडली मे जो ग्रह उच्च व स्वग्रही हो तो उनके उपरोक्त वर्ष सीमा से गणना की जाती है। जो ग्रह नीच के होते है तो उन्हे आधी संख्या दी जाती है,सूर्य के पास जो भी ग्रह जाता है अस्त हो जाता है उस ग्रह की जो आयु होती है वह आधी रह जाती है,परन्तु शुक्र शनि की पिंडायु का ह्रास नही होता है,शत्रु राशि में ग्रह हो तो उसके तृतीयांश का ह्रास हो जाता है। इस प्रकार आयु ग्रहों को आयु संख्या देनी चाहिये। पिंडायु वारायु एवं अल्पायु आदि योगों के मिश्रण से आनुपातिक आयु वर्ष का निर्णय करके दशा क्रम को भी देखना चाहिये। मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यंतर दशा में जातक का निश्चित मरण होता है। उस समय यदि मारकेश ग्रह की दशा न हो तो मारकेश ग्रह के साथ जो पापी ग्रह उसकी दशा में जातक की मृत्यु होगी। ध्यान रहे अष्टमेश की दशा स्वत: उसकी ही अन्तर्द्शा मारक होती है। व्ययेश की दशा में धनेश मारक होता है,तथा धनेश की दशा में व्ययेश मारक होता है। इसी प्रकार छठे भाव के मालिक की दशा में अष्टम भाव के ग्रह की अन्तर्दशा मारक होती है। मारकेश के बारे अलग अलग लगनो के सर्वमान्य मानक इस प्रकार से है।

मारकेश विचार

जन्म लगन से आठवा स्थान आयु स्थान माना गया है। लघु पाराशरी से तीसरे स्थान (आठवें से आठवा स्थान) को भी आयु स्थान कहा गया है। आयु स्थान से बारहवें यानी सप्तम को भी मारक कहा गया है।शास्त्रों में दूसरे भाव के मालिक को पहला मारकेश और सप्तम भाव के मालिक को दूसरा मारकेश बताया है। आठवा भाव मृत्यु का सूचक है। आयु और मृत्यु एक दूसरे से सम्बन्धित होते है। आयु का पूरा होना ही मृत्यु है। मौत के कारण बनते है,रोग दुर्घटना या अन्य प्रकार मौत के कारण बनते है। इस प्रकार से आठवें भाव से मौत और मनुष्य के जीवन का विचार किया जाता है। रोग का साध्य या असाध्य होना आयु का एक कारण है। जब तक आयु है कोई रोग असाध्य नही होता है,किंतु आयु की समाप्ति के आसपास होने वाला साधारण रोग भी असाध्य बन जाता है। इसलिये रोगों के साध्य असाध्य होने का विचार भी इस भाव से होता है। बारहवे भाव को व्यय स्थान भी कहते है व्यय का अर्थ है खर्च करना,हानि होना आदि। कोई भी रोग शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करने वाला होता है,इसलिये बारहवें भाव से रोगों का विचार किया जाता है। इस स्थान से कभी कभी मौत के कारणों का पता चल जाता है,वस्तुत: अचानक दुर्घटना होना मौत के द्वारा मोक्ष का कारण भी यहीं से निकाला जाता है। मारकेश का नाम लेते ही या मौत का ख्याल आते ही लोग घबडा जाते है। आचार्यों ने अलग अलग लग्नो के अलग अलग मारकेश बताये है। मेष लग्न के जातक के लिये शुक्र मारकेश होकर भी उसे मारता नही है,लेकिन शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ अनिष्ट करते है। वृष लगन के लिये गुरु घातक है,मिथुन लगन वाले जातकों के लिये चन्द्रमा घातक है,लेकिन मारता नही है मंगल और गुरु अशुभ है,कर्क लगन वाले जातकों के लिये सूर्य मारकेश होकर भी मारकेश नही है,परन्तु शुक्र घातक है,सिंह लगन वालो के लिये शनि मारकेश होकर भी नही मारेगा,लेकिन बुध मारकेश का काम करेगा। कन्या लगन के लिये सूर्य मारक है,पर वह अकेला नही मारेगा मंगल आदि पाप ग्रह मारकेश के सहयोगी होंगे। तुला लगन का मारकेश मंगल है,पर अशुभ फ़ल गुरु और सूर्य ही देंगे। वृश्चिक लगन का गुरु मारकेश होकर भी नही मारेगा,जबकि बुध सहायक मारकेश होकर पूर्ण मारकेश का काम करेगा। धनु लग्न का मारक शनि है,पर अशुभ फ़ल शुक्र देगा। मकर लगन के लिये मंगल ग्रह घातक है,कुंभ लगन के लिये मारकेश गुरु है लेकिन घातक कार्य मंगल करेगा। मीन लगन के लिये मंगल मारक है शनि भी मारकेश का काम करेगा। ध्यान रहे छठे आठवें बारहवें भाव मे पडे राहु केतु भी मारक ग्रह का काम करते है।

मृत्यु के प्रकार

मौत के आठ प्रकार माने गये है। केवल शरीर से प्राण निकलना ही मौत की श्रेणी में नही आता है अन्य प्रकार के कारण भी मौत की श्रेणी में आते है। इन आठ प्रकार की मौत का विवरण इस प्रकार से है:-

व्यथा दुखं भयं लज्जा रोग शोकस्तथैव च।
मरणं चापमानं च मृत्युरष्टविध: स्मृत:॥

व्यथा

शरीर में लगातार कोई न कोई क्लेश बना रहना। किसी घर के सदस्य से अनबन हो जाना और उसके द्वारा अपमान सहते रहना। शरीर का ख्याल नही रखना और लगातार शरीर का कमजोर होते जाना। मन कही होना और कार्य कुछ करना बीच बीच में दुर्घटना हो जाना और शरीर मे कष्ट पैदा हो जाना। आंखो मे कमजोरी आजाना,कानो से सुनाई नही देना हाथ पैर में दिक्कत आजाना और दूसरों के भरोसे से जीवन का निकलना आदि बाते व्यथा की श्रेणी में आती है।

शत्रुओं से घिरा रहना

बिना किसी कारण के बिना किसी बात के लोगों के द्वारा शत्रुता को पालने लग जाना। किसी भी प्रकार की बात की एवज में शरीर को कष्ट पहुंचाने वाले उपक्रम करना। घर के बाहर निकलते ही लोगों की मारक द्रिष्टि चलने लगना। पिता पुत्र पत्नी माता अथवा किसी भी घर के सदस्य से धन पहिनावा मानसिक सोच सन्तान बीमारी जीवन साथी अपमान धर्म न्याय पैतृक सम्पत्ति कार्य आमदनी यात्रा आदि के कारणों से भी घर के सदस्य अपनी अपनी राजनीति करने लगते है और किसी न किसी प्रकार का मनमुटाव पैदा हो जाता है,जरूरी नही है कि दुश्मनी बाहर के लोगों से ही हो,अपने खास लोगों से रिस्तेदारों से भी हो सकती है।

भय

मारकेश का प्रभाव शरीर की सुन्दरता पर भी होता है धन की आवक पर भी होता है अपने को संसार में दिखाने के कारणों पर भी होता है,अपने रहन सहन और मानसिक सोच पर भी होता है सन्तान के आगे बढने पर भी होता है किये जाने वाले रोजाना के कार्यों पर भी होता है,अच्छे या बुरे जीवन साथी के प्रति भी होता है,कोई गुप्त कार्य और गुप्त धन के प्रति भी होता है धर्म और न्याय के प्रति भी होता है जो भी कार्य लगातार लाभ के लिये किये जाते है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है जो धन कमाकर खर्च किया जाता है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है और इन कारकों के प्रति भय रहना भी मारकेश की श्रेणी में आता है।

लज्जित होना

शरीर में कोई व्यथा है और अपने से छोटे बडे किसी से भी शरीर की पूर्ति के लिये या शरीर को आगे पीछे करने के लिये सहायता मांगी जाती है और जब सहायता के बदले में खोटे वचन सुनने को मिलते है,अपमान भरी बाते सुनने को मिलती है दुत्कारा जाता है,किसी भी वस्तु की चाहत के लिये खरीदने की लालसा है और धन के लिये अपमानित होना पडता है,लिखने पढने या सन्देश देने के लिये किसी सहारे की जरूरत पडती है या कपडों के पहिनने के लिये लालसा होती है उस लालसा के प्रति शक्ति नही होती है अथवा किसी ऐसे देश भाषा या जलवायु में पहुंचा जाता है जहां की भाषा और रीति रिवाज समझ में नही आने से ज्ञानी होने के बाद भी भाषा का अपमान होता है तो लज्जित होना पडता है,यात्रा के साधन है फ़िर भी मारकेश के प्रभाव से यात्रा वाले साधन बेकार हो गये है किसी से सहायता मांगने पर उपेक्षा मिलती है तो समझना चाहिये कि चौथे भाव के मालिक के साथ मारकेश का प्रभाव है,सन्तान के प्रति या सन्तान के द्वारा किसी बात पर उपेक्षा की जाती है तो भी समझना चाहिये कि पंचमेश या पंचम भाव के साथ मारकेश का प्रभाव है।

शोक

पैदा होने के बाद पालने पोषने वाले चल बसे,विवाह के बाद पत्नी या सन्तान चल बसी भाई बहिन के साथ भी यही हादसा होने लगा माता का विधवा पन बहिन का विधवा होकर गलत रास्ते पर चले जाना हितू नातेदार रिस्तेदार जहां भी नजर जाती है कोई न कोई मौत जैसा समाचार मिलता है तो भी मारकेश का प्रभाव माना जाता है।

अपंगता

शरीर के किसी अवयव का नही होना या किसी उम्र की श्रेणी में किसी अवयव का दूर हो जाना और उस अवयव के लिये कोई न कोई सहायता के लिये तरसना अथवा लोगों के द्वारा उपेक्षा सहना आदि अपंगता के लिये मारकेश को जाना जाता है।

अपमानित होना

कहा जाता है कि गुरु को अगर शिष्य तू कह दे तो उसका अपमान हो जाता है और उस गुरु के लिये वह शब्द मौत के समान लगता है। उसी प्रकार से पुत्र अगर पिता को तू कह देता है तो भी पिता का मरण हो जाता है। माता अगर सन्तान की पालना के लिये गलत रास्ते को अपना लेती है तो भी अपमान से मरने वाली बात मानी जाती है,खूब शिक्षा के होने के बाद भी अगर शिक्षा के उपयोग का कारण नही बनता है तो भी अपमानित होना पडता है आदि बाते भी मारकेश की श्रेणी में आती है।

शरीर से प्राण निकलना

यह भौतिक मौत कहलाती है जब शरीर की चेतना समाप्त हो जाती है और निर्जीव शरीर मृत शरीर हो जाता है। अक्सर इसे ही मौत की श्रेणी में माना जाता है।

यदा मानं लभते माननार्हम,तदा स वै जीवति जीव: लोके।
यदावमानं लभते महांतं,तदा जीवन्मृत इत्युच्यते स:॥

इस जीव जगत में माननीय पुरुष जब तक सम्मान पाता है तभी तक वह वास्तव में जीवित है,जब वह महान अपमान प्राप्त करने लगता है,तब वह जीते जी मरा हुआ कहलाता है।

शरीर सौख्य योग

लगनाधिपति और गुरु या शुक्र का केन्द्र में स्थापित होना जातक को दीर्घ जीवी और राजनीति में सफ़ल होने के लिये अपनी युति देता है,ऐसे जातक को जीवन भर स्वस्थ शरीर का सुख बना रहता है।

जन्म राशि का लग्न शुभ ग्रहो से युक्त अथवा देखना शरीर को निरोगी बनाने मे और शरीर को स्वस्थ रखने के लिये माना जाता है।

लगन का स्वामी बलवान होकर शुभ ग्रहों से युक्त हो तो शरीर स्वस्थ होता है।

लगन मे जल राशि हो तो शरीर मोटा होता है तथा लगनेश जलग्रह बलवान हो तो शरीर स्वस्थ होता है।

लगन का स्वामी चर राशि मे शुभ ग्रह से देखा जा रहा हो तो शरीर स्वस्थ होता है,कीर्तिमान भी होता है और संसार में आदर पाने वाला होता है।

चन्द्र राशि और लगन का स्वामी एक ही स्थान पर हो तो शरीर मोटा होता है।

लगन का स्वामी जल राशि मे हो शुभ ग्रह चन्द्र बुध गुरु शुक्र से युक्त होवे और जलचर ग्रह से देखने वाला हो तो शरीर ताजा और मोटा होता है।

शुभ ग्रह की राशि ४ ३ ६ ९ १२ २ ७ हो और लगन नवांश का स्वामी जन्म राशि का होवे तो शरीर स्वस्थ होता है।

शुभ राशि का लग्न हो और पापग्रह नही देखता हो तो शरीर स्वस्थ होता है।

जन्म लगन मे गुरु हो या लगन को गुरु देखता हो तो शरीर स्वस्थ होता है।

लगन स्वामी शुभ ग्रह के साथ राशि मे बलवान हो तो शरीर स्वस्थ होता है।

लगन का स्वामी जल राशि मे बलवान शुभ ग्रह के साथ हो तो शरीर पुष्ट होता है।

यदि लग्नाधिपति चर राशि मे हो और उस पर शुभ ग्रह की द्रिष्टि हो तो शरीर बलवान होता है।

मोटापे का योग

लग्नाधिपति और जिस ग्रह के नवांश मे लग्नाधिपति हो और जलीय राशियों कर्क मीन वृश्चिक का योगदान हो तो शरीर मोटा होता है।

लगन भाव मे गुरु का होना या लग्न भाव में जलीय राशि का प्रभावी होना शरीर को मोटा बनाने के लिये काफ़ी है।

लगन मे शुभ ग्रह हो और शुभ ग्रहो की द्रिष्टि हो तो भी शरीर मोटा होता है।

लगन मे शुभ राशि हो और उस पर पाप ग्रह की द्रिष्टि नही हो तो भी शरीर मोटा होता है।

लगन मे गुरु हो या लगन को गुरु देखता हो तो शरीर मोटा होता है।

सुन्दर चेहरे वाला योग

यदि दूसरे भाव का मालिक केन्द्र मे हो और शुभ ग्रहो से देखा जाता हो तो चेहरा सुन्दर होता है।

दूसरे भाव का अधिपति केन्द्र मे हो वह अपनी उच्च राशि मे हो स्वराशि मे हो या मित्र राशि मे हो तो भी चेहरा सुन्दर होता है।

बडा और भारी शरीर

बुध से सप्तम मे मंगल होने पर भारी देह वाला योग बनता है।

लगन का स्वामी सिंह कन्या तुला या वृश्चिक मे हो तो भारी शरीर होता है।

ठिगना योग

सूर्य और शुक्र सिंह राशि मे और दसम स्थान मे मकर राशि का चन्द्रमा हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।

लगन और व्यवसाय स्थान का स्वामी चन्द्रमा शनि से देखा जाता हो शुभ ग्रह नही देख रहे हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।

पृष्ठोदय राशि १ २ ४ ९ १० का चन्द्रमा चौथे स्थान में हो तथा शनि से द्रष्ट हो लगन स्वामी मेष राशि में हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।

लगन या बारहवे स्थान में सूर्य और चन्द्रमा हो शनि चौथे प्रभाव से देख रहा हो कोई शुभ ग्रह नही देख रहा हो जन्म लगन का स्वामी मेष राशि का हो तो व्यक्ति छोटे कद का होता है।

मकर राशि का अस्त चन्द्रमा का लगन हो और शनि चन्द्रमा सूर्य की नजर हो तो भी मनुष्य छोटे कद का होता है।

लगन मे शनि बुध उच्च का हो अथवा चौथे स्थान मे शनि बुध हो तो मानव छोटे कद का होता है।

मेश मीन कर्क मकर और वृश्चिक इस राशि मे शनि और चन्द्रमा पाप ग्रह से युत्क हो या नवम स्थान में हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।

स्वराशि का मंगल हो,बुध तीसरे या चौथे स्थान और शनि लगन में हो तो आदमी छोटे कद का होता है।

कुबडा योग

कर्क राशि का चन्द्रमा लगन मे और शनि मंगल देखते हों तो मनुष्य छोटे कद का कुबडा होता है।

लगन और बारहवे स्थान का स्वामी तीसरे स्थान में पापग्रह से देखा जाता हो चौथे स्थान में शनि हो और लगन का स्वामी तथा मंगल की डिग्री कम या बहुत अधिक हो तो भी मनुष्य ठिगना होता है।

छठे सातवे आठवे स्थान के स्वामी कमजोर हो छठे स्थान पर शुभ ग्रह और आठवे स्थान में पापग्रह हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।

छठे स्थान में बुध गुरु शुक्र हो और चन्द्रमा के पीछे सब ग्रह हों अथवा सातवे आठवें स्थान में शनि मंगल नीच राशि मे हो जातक कुबडा होता है।

मेष या वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल चौथे स्थान में या नवांश में कमजोर हो तो व्यक्ति कुबडा होता है।

पराक्रमी योग

मंगल बलवान हो लगन या दसवें भाव में हो रात्रि का जन्म हो तो व्यक्ति पराक्रमी होता है।

लगन में मंगल हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है।

सातवें स्थान में बलवान मंगल स्थापित हो तो जातक जरा सी बात पर गुस्सा करने वाला होता है।

दिन का जन्म हो बलवान मंगल लगन में या दसवे भाव मे हो तो भी जातक क्रोधी होता है।

जन्म लगन का स्वामी निर्बल हो त्रिकोण में हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है और जोखिम लेने वाला भी होता है।

लगन या सप्तम से कमजोर मंगल को शनि देखता हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है और कमजोर भी होता है चालाक भी होता है।

लगन का स्वामी बारहवे या आठवें स्थान में हो तो भी जातक क्रोधी होता है।

धन स्थान का स्वामी गुलिक के साथ हो तो भी जातक के अन्दर क्रोध होता है।

लगन का स्वामी बुध से छठे स्थान में हो तो जातक क्रोधी भी होता है और बात बात में अपने का ही बुरा करने वाला भी होता है।

लगन के नवे भाव में राहु शनि इकट्ठे हो तो भी जातक अपने को शिक्षा देने वाले भला करने वाले व्यक्ति के साथ भी अपघात कर सकता है।

तीसरे स्थान में मंगल हो उसको चन्द्रमा और बुध देख रहे हो तो भी जातक अपने साथ भला करने वाले के साथ बुरा सोचने वाला होता है।

नवे स्थान में गुरु और सूर्य हो तो भी जातक अपने अहम के कारण विश्वास करने वाला नही होता है।

तीसरे स्थान में केतु के होन पर जातक को कलह ही अच्छी लगती है।

गल्ती को क्षमा करने वाला योग

चौथे भाव का स्वामी लगन में अथवा लग्न्का स्वामी चौथे स्थान में हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है.

चौथा भाव बलावान हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।

शुभ ग्रह चौथे स्थान में स्थिति हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।

कर्क वृश्चिक मीन राशि मे गया हुआ सूर्य अगर मंगल को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।

कर्क वृश्चिक और मीन यह नि:शब्द राशिया है इन राशियों में सूर्य मंगल को देखता हो तो जातक क्षमावान होता है।

शनि मंगल सूर्य ऊपर के राशि में स्थिति होकर चन्द्रमा को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।

लगन पंचम दसम एकादश स्थान में पुत्र सहम हो और सूर्य चन्द्रमा को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।”

हँसमुख योग

लगन में बुध हो और सातवें स्थान में गुरु हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है।

बुध की राशि के ३ ६ का नवांश हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है।

बुध मंगल का योग मकर राशि अथवा कुंभ राशि में हो व्यक्ति मजाक करने वाला होता है और मजाक के अन्दर ही सब कुछ लूटने वाला होता है।

मीन राशि में चन्द्रमा सूर्य के साथ हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है और अपने स्वभाव से ही बडे बडे काम करवा लेता है।

चिरंजीवी योग

अश्वत्थामा राजाबलि महर्षि वेदव्यास भगवान राम के सेवक वीर हनुमान और लंका के राजा विभीषण कृपाचार्य और भगवान परशुराम यह सात महापुरुष चिरंजीवी है।

सिंह लगन का गुरु शुक्र कर्क चन्द्रमा दूसरे स्थान में कन्या राशि का हो और पापग्रह तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में हो चिरंजीवी योग होता है।

लगन में शनि हो सूर्य और मंगल बारहवें भाव हो बचे हुये सभी ग्रह आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।

मेष लगन में कर्क का सूर्य चौथे स्थान में,शनि मीन राशि का बारहवें स्थान में मंगल सातवें और पूर्ण बली चन्द्रमा यदि बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।

वृष लगन में चन्द्रमा बुध शुक्र एवं गुरु के साथ लगन में हो और बचे हुये सभी ग्रह द्वितीय भाव में हो तो जातक इन्द्र के समान चिरंजीवी होता है।

यदि स्वग्रही गुरु लगन मे या दसवें हो शुक्र मिथुन का केंद्न में हो और ऐसा व्यक्ति लम्बी आयु वाला चिरंजीवी होता है।

यदि सभी ग्रह एक ही राशि मे बैठ कर केन्द्र या त्रिकोण में होते है तो बालक पैदा होते ही मर जाता है लेकिन मंत्र या औषिधि से बच भी जाता है तो वह चिरंजीवी हो जाता है।

यदि पंचम और नवंम में कोई पापग्रह नही हो तथा केन्द्र में कोई भी सौम्य ग्रह नही हो तो तथा अष्टम स्थान में भी कोई पापग्रह नही हो तो जातक चिरंजीवी होता है।

यदि वृष लगन में शुक्र और गुरु केन्द्र मे हो और अन्य सारे ग्रह तीसरे छठे दसवें और ग्यारहवें भाव मे हो तो ऐसा जातक चिरंजीवी होता है।

कर्क लगन में चन्द्रमा वृष राशि में,शनि तुला राशि में गुरु मकर राशि तो जातक चिरंजीवी होता है।

कर्क लगन में कर्क का नवमांश हो गुरु केन्द्र में मंगल मकर में शुक्र सिंह नवमांश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।

कन्या लगन मे कन्या का नवमांश बुध सातवें गुरु केन्द्र में शनि शुरु के अंश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।

शुक्र बारहवां मंगल केन्द्र में गुरु सिंह के नवमांश में होकर केन्द्र में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।

बुध उत्तम अंश में होकर केन्द्र में हो शुक्र आखिरी अंशों में हो गुरु का राशि परिवर्तन हो तो जातक चिरंजीवी होता है।

कर्क लगन हो धनु का नवमांश हो तथा गुरु लगनस्थ हो नवमांश में तीन या चार ग्रह उच्च के हों तो जातक चिरंजीवी होता है।

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